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Friday, 25 November 2016

वृत्तान्त

अटूट लड़ी हो इस जीवन वृत्तान्त की तुम,
अर्धांग सर्वदा ही जन्म-जन्मातर रही हो तुम,
न होते कंपन इस हृदय के गलियारों में,
उभर कर न आती तस्वीर कोई इन आखों में,
न लिख पाता वृत्तान्त मैं जीवन की राहों के,
मेरे पिछले जीवन की ही कोई अटूट कड़ी हो तुम....

लिख जाता हूँ मैं कितने ही पन्ने तेरी लय पर,
अनलिखे कितने ही कोरे पन्ने, फिर होते हैं मुखर,
विह्वल हो उठते हैं शब्दों के भाव इन पन्नों पर,
शक्ल फिर तेरी ही उभर आती है लहराकर,
अर्धांग मेरी, तुम सिमट जाती हो वृत्तान्त बनकर,
मेरे अगले जन्म की कड़ी, कोई लिख जाती हो तुम...

सीधा सा मेरा वृत्तान्त, बस तुम से तुम तक,
इस जन्म पुकार लेता हूँ बस तुम्हे मैं अन्नु कहकर,
गीतों की गूँजन में मेरे, बजते हैं तेरे ही स्वर,
तैरती आँखों में तेरी, जब निखर उठती है तस्वीर मेरी,
प्रेरित होता हूँ मैं वृत्तान्त नई लिख जाने को तब,
जन्म-जन्मांतर की कोई लड़ी सी बन जाती हो तुम...

तिथि: 24/11/2016...
(हमारे शादी की 23वीं सालगिरह पर अर्धांग को सप्रेम)