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Tuesday, 16 October 2018

नींद

कब नींद ढ़ुलकती है, नैनो में कब रात समाता है....

सांझ ढले यूँ पलकों तले,
हौले-हौले कोई नैनों को सहलाता है,
ढ़लती सी इक राह पर,
कोई हाथ पकड़ कहीं दूर लिए जाता है.....
बंद पलकों को कर जाता है....

कब नींद ढ़ुलकती है, नैनो में कब रात समाता है....

उभर आते हैं दृश्य कई,
पटल से दृश्य कई, कोई मिटा जाता है,
तिलिस्म भरे क्षण पर,
रहस्यमई इक नई परत कोई रख जाता है.....
बंद पलकों को कर जाता है....

कब नींद ढ़ुलकती है, नैनो में कब रात समाता है....

बेवश आँखें कोई झांके,
कोई अंग-अग शिथिल कर जाता है,
कोई यूँ ही बेवश कर,
खूबसूरत सा इक निमंत्रण लेकर आता है.....
बंद पलकों को कर जाता है....

कब नींद ढ़ुलकती है, नैनो में कब रात समाता है....

नींद सरकती है नैनों में,
धीरे से कोई दूर गगन ले जाता है,
जादू से सम्मोहित कर,
तारों की उस महफिल में लिए जाता है.....
बंद पलकों को कर जाता है....

कब नींद ढ़ुलकती है, नैनो में कब रात समाता है....