हे सती, शिवर्धांगिनी तुम ही हर युग,
खोना था तुझको, उस युग,
ताकि, मर्यादा का भान रहे, सम्मान रहे,
शक्ति हो तुम, यह प्रमाण रहे!
शक्तिरूपा, शक्ति-पीठ जा बैठे तुम,
त्याग चले, शिव को तुम,
विधि का लेखा, स्व-भस्माहूत हो चले,
शक्ति में, तुम आहूत हो चले!
निज मन-मर्जी, कनखल ना जाते,
अपमान भरा घूँट ना पाते,
असह्य वियोग, असह्य करुण विलाप,
प्रलयंकारी, यह प्रलायालाप!
पी बिन पराया, वो बचपन का घर,
सच है शिव, शेष आडंबर,
आओ आ जाओ, मन के मानसरोवर,
जन्म-जन्म, ये शिव तेरा वर!
रूप बदल, सती बन आई पार्वती,
थी युग की ही, ये नियति,
ना शिव अंजाने थे, ना ही थी पार्वती,
सद्-परिणति, महा शिवरात्रि!
सुखद मिलन, शिव करते स्वागत,
जय जंगदंबिका अभ्यागत,
शुभ मुहूर्त, शुभ लग्न, शुभ ये वेला,
तू प्रथम पग, कैलाश पर ला!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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आदरणीया कवयित्री शकुन्तला जी के अनुरोध पर तथा महा-शिवरात्रि के अवसर पर प्रेषित उक्त चित्र पर आधारित रचना.........
⚘⚘⚘आभार समर्पण सहित⚘⚘⚘