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Sunday, 4 November 2018

सर्द हवाएं

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

कहीं जम सी गईं है कुछ बूँद,
कहीँ छाने लगी है आँखों में धुंध,
कहीं ख्वाब बुनने लगा है मन,
कहीं खामोशियां दे रही हैं सदाएं ....

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

कोई तकता आँखों को भींचे,
कोई जगता यूहीं आँखो को मूंदे,
कोई रंग सजाने लगा है मन,
कोई बुनने लगा है कई ख्वाहिशें ....

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

ओस बनकर गिरी बूंदें कई,
मचलने लगी ओस की बूँदें कहीं,
कुछ बूँद भिगोने लगा है मन,
कुछ बूँद भरने लगी है सर्द आहें......

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

डोलने लगी है डाल-डाल,
कुछ बोलने लगी है डाल-डाल,
कोई गीत गाने लगा है मन,
कोई राज खोलने लगी है दिशाएं......

दस्तक ये कैसी, देकर गई सर्द सी हवाएं.....

Wednesday, 14 September 2016

गुजरी राहें

मिलने आऊॅगा मैं ढलते हुए शाम की चंपई सुबह लेकर...

वो राहें मुड़कर देखती हैं अब राहें मेरी,
जिन राहों से मैं गुजरा था बस दो चार घड़ी,
शायद करने लगी हैं वो राहें मुझसे प्यार,
सुन सकूंगा न मैं उन राहों की सदाएं,
पुकारो न मुझको बार-बार, ए गुजरी सी राहें,

मिलने आऊॅगा मैं ढलते हुए शाम की चंपई सुबह लेकर...

इस कर्मपथ पर मेरी, गुजरेंगी राहें कई,
अपनत्व बाटूंगा उन्हे भी मैं, चंद पल ही सही,
अपने दिल के करने होंगे मुझे टुकड़े हजार,
कर न सकूंगा मैं उन राहों से भी प्यार,
हो सके तो भूल जाना मुझे, ए गुजरी सी राहें,

मिलने आऊॅगा मैं ढलते हुए शाम की चंपई सुबह लेकर...

ए राहें, तू झंकृत न कर मेरे मन के तार,
तू दे न अब सदाएं, बुला न मुझको यूॅ बार-बार,
बाॅध न तू मुझे रिश्तों के इन कच्चे धागों से,
भीगेंगी आॅखें मेरी, तोड़ न पाऊंगा मैं ये बंधन,
बेवश न कर अब मुझको, ए गुजरी सी राहें,

मिलने आऊॅगा मैं ढलते हुए शाम की चंपई सुबह लेकर...

Saturday, 30 April 2016

राहें मुड़ गईं

ये राहे हैं मेरी प्रीत की, इन राहों से इतर मैं जाऊँ किधर?

कब ये राहें मुड़ गई, बेखबर हैं वो अब तलक,
अंजान अपनी ही धुन में, बढ़ चले वो जाने किधर,
कौन सुनता है सदाएँ, गुजरे हुए उन राहों की,
उन राहों की ठोकरों से, अब तक रहे वो बेखबर।

तुमको सदाएँ देती रहेंगी, मंजिलें उन राहों की,
जिन राहों की मंजिलों से, अब तक रहे तुम बेखबर,
कौन सुनता है सदाएँ, गुजरे हुए उन मंजिलें की,
आज अपनी धुन में हो तुम, कल की तुमको क्या खबर।

हम आज भी है खड़े, राह की उस मोड़ पर,
मुड़ गए थे वो जहाँ से, बाहें लगन की छोड़कर,
कौन सुनता है सदाएँ, गुजरे हुए उस मोड की,
कल मिलेंगे उस मोड़ पर ही, जाना है तुमको भी उधर।

Tuesday, 26 January 2016

धड़कनों की सदाएँ

किसकी सदाएँ गूँजती वादियों के दरमियाँ फिर,
धड़कने किसी की सुनाई दे रही मुझको यहाँ फिर,
क्या हृदय किसी विरहन का व्यथित हो गया है फिर?
या याद में किसी के कोई रो रहा है फिर?

ठहरो जरा संगीत धड़कनों की सुन लूँ मैं भी
अपने सुरमंदिर की तानपूरा का तार बुन लूँ मैं भी,
सुर चुरा लू दर्द का आज व्यथित हो रहा मैं भी,
या याद मे किसी की आज रो रहा हूँ मैं भी?

व्यथित हृदय की धड़कनें बेसुरी सी आज क्युँ,
भूल गए हैं लय सारे इस वीणा के तार क्युँ,
विरहन की संगीत को आज मिलते नही हैं साज क्युँ,
या याद मे विरहन की मैं बिसर गया संगीत ज्युँ?