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Thursday, 29 July 2021

जागती प्रकृति

वो, शून्य सा किनारा, स्तब्ध वो नजारा,
शायद, जाग रही हो प्रकृति,
वर्ना, ये पवन, न यूँ हमें छू लेती,
इक सदा, यूँ, हमें दे जाती!

निःशब्द कर गई, ठहरी सी झील कोई,
सदियों, कहीं हो जैसे खोई,
पथराई सी, डबडबाई, वो पलकें,
बोलती, कुछ, हल्के-हल्के!

वो शिखर! पर्वतों के हैं, या कोई योगी,
खुद में डूबा, तप में खोया,
वो तपस्वी, ज्यूँ है, साधना में रत,
युगों-युगों, यूँ ही, अनवरत!

हल्की-हल्की सी, झूलती, वो डालियाँ,
फूलों संग, झूमती वादियाँ,
बह के आते, वो, बहके से पवन,
बहक जाए, क्यूँ न ये मन!

बे-आवाज, गहराता कौन सा ये राज!
जाने, कौन सा है ये साज,
बरबस उधर, यूँ, खींचता है मौन,
इक सदा, यूँ देता है कौन!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 17 November 2019

चुप हैं दिशाएँ

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

ओढ़े खमोशियाँ, ये कौन गुनगुना रहा है?
हँस रही ये वादियाँ, ये कौन मुस्कुरा रहा है?
डोलती हैं पत्तियाँ, ये कौन झूला रहा है?
फैली है तन्हाईयाँ, कोई बुला रहा है!
ये क्या हुआ, है मुझको आज!
लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
ख़ामोशियों ने, बदले हैं अंदाज!

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

किसकी है मुस्कुराहट, ये कैसी है आहट!
छेड़े है कोई सरगम, या है इक सुगबुगाहट!
चौंकता हूँ, सुन पत्तियों की सरसराहट!
सुनता हूँ फिर, अंजानी सी आहट!
खुली सी पलकें, हैं मेरी आज!
लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
मुस्कुराहटों के, बदले हैं अंदाज!

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

मुद्दतों तन्हा, रहा अकेला मेरा ही साया,
चुप हैं ये दिशाएँ, वो चुपके से कौन आया!
धुन ये कौन सा, धड़कनों में समाया?
रंग ये कौन सा, मन को है भाया?
ये पुकारता है, किसको आज!
लगे तन्हाईयों में, कहीं बज रहे हैं साज!
यूँ रुबाईयों ने, बदले हैं अंदाज!

चुप हैं ये दिशाएँ, कहीं बज रहे हैं साज!
धड़कनों नें यूँ, बदले हैं अंदाज!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)