और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!
वो ही, अल्हड़ सी रात,
कहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
कौन, मेरी सुनता!
और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!
आँखें, नींद से बोझिल,
पर, कहीं दूर, पलकों की मंजिल,
उन निशाचरों की वेदना,
और कैसे, सुनता!
और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!
वो तम था, या तमस!
दूर था बहुत, वो कल का दिवस,
गहराते, रातों के सन्नाटे,
कौन, चुन लेता!
और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!
लब्ध था, वो आकाश,
पर, आया ना, वो भी अंकपाश,
टिम-टिमाते से, वो तारे,
क्यूँ कर, देखता!
और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!
थी, ढ़ुलकती सी नींद,
ये पलकें, होने लगी थी उनींद,
सो गया, तान कर चादर,
कितना, जागता!
और कितनी, रात बुनता!
बैठकर किनारे, और कितने, तारे गिनता!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
वो ही, अल्हड़ सी रात,
ReplyDeleteकहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
कौन, मेरी सुनता... बहुत सुंदर रचना
आदरणीया शकुन्तला जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (03-03-2021) को "चाँदनी भी है सिसकती" (चर्चा अंक-3994) पर भी होगी।
ReplyDelete--
मित्रों! कुछ वर्षों से ब्लॉगों का संक्रमणकाल चल रहा है। आप अन्य सामाजिक साइटों के अतिरिक्त दिल खोलकर दूसरों के ब्लॉगों पर भी अपनी टिप्पणी दीजिए। जिससे कि ब्लॉगों को जीवित रखा जा सके। चर्चा मंच का उद्देश्य उन ब्लॉगों को भी महत्व देना है जो टिप्पणियों के लिए तरसते रहते हैं क्योंकि उनका प्रसारण कहीं हो भी नहीं रहा है। ऐसे में चर्चा मंच विगत बारह वर्षों से अपने धर्म को निभा रहा है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
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आदरणीय मयंक सर, आपकी चिन्ता बिल्कुल सत्य है। फिर भी, मेरा ख्याल है, पाठक अच्छी रचनाओं की तलाश में पटल पर आते ही रहेंगे। आप का प्रयास अतुलनीय व सराहनीय है। आभार।
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज मंगलवार 02 मार्च 2021 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteसादर आभार आदरणीय। ।।
Deleteबहुत ही सुन्दर रचना आदरणीय
ReplyDeleteआदरणीया अभिलाषा जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteबहुत खूबसूरत रचना
ReplyDeleteआदरणीया भारती जी, आपके प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteबहुत सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआदरणीय शान्तनु जी,बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।।
Deleteबहुत ही खूबसूरत रचना, बधाई हो
ReplyDeleteआदरणीया ज्योति जी, मेरे इस पटल पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित और उत्साहित हूैं। साअःर आभार।
Deleteबहुत सुंदर सृजन..
ReplyDeleteआदरणीया 'अंजान' जी, इस पटल पर आपका हार्दिक अभिनन्दन है। आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित और उत्साहित हूैं। सादर आभार।
Deleteबहुत बढ़िया सर!
ReplyDeleteआदरणीया माथुर जी, आपके प्रेरक शब्दों हेतु आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteसुंदर सार्थक सृजन के लिए बधाई
ReplyDeleteआदरणीया डा. वर्षा जी, आपके उत्साहवर्धन हेतु आभार, बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteवो ही, अल्हड़ सी रात,
ReplyDeleteकहती रही, सिर्फ, अपनी ही बात,
मनमर्जियाँ, मनमानियाँ,
कौन, मेरी सुनता!
एक सजीव रचना ।
सुंदर।
आदरणीया सधु जी, प्रेरक शब्दों से अभिभूत हूँ। आभार बहुत-बहुत धन्यवाद। ।।।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteआदरणीय ओंकार जी, बहुत-बहुत धन्यवाद। आभारी हूँ।
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