Tuesday, 19 January 2021

झुर्रियाँ

बोझ सारे लिए, उभर आती हैं झुर्रियाँ,
ताकि, सांझ की गर्दिश तले, 
यादें ओझिल न हो, सांझ बोझिल न हो!

उम्र, दे ही जाती हैं आहट!
दिख ही जाती है, वक्त की गहरी बुनावट!
चेहरों की, दहलीज पर, 
उभर आती हैं.....
आड़ी-टेढ़ी, वक्र रेखाओं सी ये झुर्रियाँ,
सहेजे, अनन्त स्मृतियाँ!

वक्त, कब बदल ले करवट!
खुरदुरी स्मृति-पटल, पे पर जाए सिलवट!
चुनती हैं एक-एक कर,
उतार लाती हैं.....
जीवन्त भावों की, गहरी सी ये पट्टियाँ,
मृदुल छाँव सी, झुर्रियाँ!

घड़ी अवसान की, सन्निकट!
प्यासी जमीन पर, ज्यूँ लगी हो इक रहट!
इस, अनावृष्ट सांझ पर,
न्योछार देती हैं...
बारिश की, भीगी सी हल्की थपकियाँ, 
कृतज्ञ छाँव सी, झुर्रियाँ!

बोझ सारे लिए, उभर आती हैं झुर्रियाँ,
ताकि, सांझ की गर्दिश तले, 
यादें ओझिल न हो, सांझ बोझिल न हो!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

29 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (20-01-2021) को "हो गया क्यों देश ऐसा"  (चर्चा अंक-3952)   पर भी होगी। 
    -- 
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है। 
    -- 
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।  
    सादर...! 
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 
    --

    ReplyDelete
  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन  में" आज मंगलवार 19 जनवरी 2021 को साझा की गई है.........  "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  3. सच झुर्रियाँ जीवन अनुभव दर्शाती हैं
    बहुत सुन्दर प्रस्तुति

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभ प्रभात व आभार आदरणीय कविता रावत जी।

      Delete
  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 20 जनवरी 2021 को साझा की गयी है.............. पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
  5. Replies
    1. शुभ प्रभात व आभार आदरणीया अनुराधा चौहान जी।

      Delete
  6. Replies
    1. शुभ प्रभात व आभार आदरणीय शान्तनु सान्याल जी।

      Delete
  7. वक्त, कब बदल ले करवट!
    खुरदुरी स्मृति-पटल, पे पर जाए सिलवट!
    चुनती हैं एक-एक कर,
    उतार लाती हैं.....
    जीवन्त भावों की, गहरी सी ये पट्टियाँ,
    मृदुल छाँव सी, झुर्रियाँ!

    बहुत सुंदर हृदयस्पर्शी रचना 🌹🙏🌹

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया डा.शरद जी।।।।

      Delete
  8. वाह ! झुर्रियों को इतने स्नेह से शायद ही किसी ने देखा हो

    ReplyDelete
    Replies
    1. इस सुन्दर सी उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया हेतु बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी।।।।

      Delete
  9. बोझ सारे लिए, उभर आती हैं झुर्रियाँ,
    ताकि, सांझ की गर्दिश तले,
    यादें ओझिल न हो, सांझ बोझिल न हो!

    अद्भुत... कितना भिन्न आकलन किया है आपने झुर्रियों का
    श्लाघनीय है आपकी पैनी लेखनी
    श्लाघनीय है आपका उत्कृष्ट सृजन

    शुभकामनाओं सहित,
    सादर
    डॉ. वर्षा सिंह

    ReplyDelete
    Replies
    1. आपकी मुक्तकंठ प्रशंसा पाकर मंत्रमुग्ध हूँ, विभोर हूँ आदरणीया डा.वर्षा जी। बहुत-बहुत धन्यवाद।

      Delete
  10. बहुत ही सुंदर हृदयस्पर्शी सृजन आदरणीय सर।
    सादर

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता सैनी जी।।।।

      Delete
  11. यूँ ही नहीं आती झुर्रियां ... बहुत अनुभव होता है समेटा हुआ इनमें ... लाजवाब सृजन ... सत्य के बहुत करीब है ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुभ प्रभात, आभार अभिनन्दन आदरणीय नसवा जी।

      Delete
  12. Replies
    1. हृदयतल से आभारी हूँ आदरणीय "अंजान" जी।।।।। नमन।।

      Delete
  13. सत्य से परिपूर्ण, अनुभव को समेटती हुई बेहतरीन रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. शुक्रिया, बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया भारती जी।

      Delete
  14. बोझ सारे लिए, उभर आती हैं झुर्रियाँ,
    ताकि, सांझ की गर्दिश तले,
    यादें ओझिल न हो, सांझ बोझिल न हो!
    बहुत खूब लिखते हैं आप

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया शकुन्तला जी।

      Delete