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Sunday, 14 May 2017

पति की नजर से इक माँ

इक झलक पति की नजर से पत्नी में समाई "माँ"......

कहता है ये मन, स्नेहिल सी माँ है वो बस इक प्रेयसी नहीं,
है इक कोरी सी कल्पना, या है वो इक ममता की छाँव..

वो खूबसूरत से दो हाथ, वो कोमल से दो पाँव,
वो ऊँगलियों पर बसा मेंहदी का इक छोटा सा गाँव,
है वो इक धूप की सुनहरी सी झिलमिल झलक,
या है वो लताओं से लिपटी, बरगद की घनेरी सी छाँव...

कहता है ये मन, वो महज इक कोरी सी कल्पना नहीं,
वो तन, वो मन है इक पीपल की भीनी सी छाँव....

निखरी है मेंहदी, उन हथेलियों पर बिखरकर,
खुश हैं वो कितनी, उन पंखुरी उँगलियों को सजाकर,
ऐ मेरे व्याकुल से मन, तू भी रह जा उनके गाँव,
यूँ ही कुछ पल जो बिखरेगा, क्षण भर को पाएगा ठाँव...

कहता है ये मन, वो है इक कोमल सा हृदय निष्ठुर नहीं,
है किसी सहृदय के हाथों का यह मृदुल स्पर्शाभाव...

14 मई, मातृ दिवस पर विशेष....

Wednesday, 27 April 2016

कहता है विवेक मेरा

कहता है हृदय मेरा, चल ख्वाहिशों का मुँह मोड़ दे तू।

तमन्नाओं की महफिल फिर जगमगाई है कहीं,
कहता है मन,
गीत कोई अधूरा सा तू गाता ले चल,
रस्मों की दम घोंटती दीवारों से,
तू बाहर निकल आ चल।

अधूरी ख्वाहिशों के शहर मे तमन्ना जागी है फिर,
कहता है दिल,
परिदें ख्वाहिशों के उड़ा ले तू भी चल,
छुपी है जो बात अबतक दिल मे,
कह दे तू भी आ चल।

महफिल ख्वाहिशों की ये, तमन्नाओं को पीने दे फिर,
कहता है विवेक,
मैं ना निकलुंगा आदर्शों की लक्ष्मन रेखा से,
तमन्ना मेरी पीकर भटके क्युँ,
चल ख्वाहिशों का मुँह मोड़ दे तू।

कहता है हृदय मेरा, विवेक की अनदेखी ना कर तू।