मूंदो तो पलकें,
और, छू लो, उन बूंदों को,
जो रह-रह छलके!
हो शायद, नीर किसी की नैनों का,
आ छलका हो, पीर उसी का,
या गाते हों, कोई गीत,
समय की धुन पर, हलके-हलके!
मूंदो तो पलकें!
समझ पाओगे, डूबे नैनों में है क्या,
बहता सा क्यूं वो इक दरिया,
झर-झर, बहते वे धारे,
हर-दम रहते क्यूं, छलके-छलके!
मूंदो तो पलकें!
विचलित क्यूं सागर, शायद जानो,
हलचल उसकी भी पहचानो,
तड़पे क्यूं, आहत सा,
लहरें तट पर, क्यूं, बहके-बहके!
मूंदो तो पलकें!
चुप-चुप हर शै, जाने क्या कहता,
बहते से, एहसासों में रमता,
कभी, भर आए मन,
जज्बात कभी ये, लहके-लहके!
मूंदो तो पलकें,
और, छू लो, उन बूंदों को,
जो रह-रह छलके!
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