यहीं रह गई परछाईयां, दब कर कहीं!
यूं जम गए, गम के बादल,
ढ़ल चुका, बेरंग आंचल सांझ का,
चुप रह गई, मुझ संग,
तन्हाईयां मेरी!
यहीं रह गई परछाईयां, दब कर कहीं!
यूं विहंसते, वो फूल कैसे,
मुरझाते रहे, आस में जो धूप के,
बिन खिले ही, रह गए,
रंग सारे कहीं!
यहीं रह गई परछाईयां, दब कर कहीं!
छुप गई, रुत किस ओर,
रुख-ए-रौशन, ज्यूं बन गए बुत,
यूं बुलाते ही, रह गए,
ये ईशारे कहीं!
यहीं रह गई परछाईयां, दब कर कहीं!
यूं थम गए, बढ़ते ये कदम,
ज्यूं थक चुके, ये बादल, वो गगन,
सिमटकर, संग रह गई,
परछाईयां मेरी!
यहीं रह गई परछाईयां, दब कर कहीं!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)