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Sunday, 19 February 2023

पल सारे

गिनता रहा मैं, ठहरे वो पल सारे,
थे, जो,
कुछ तुम्हारे, कुछ हमारे!

शान्त थे बड़े, बड़े निष्काम थे,
पल वो ही, तमाम थे,
बह चली थी, जिस ओर, जिन्दगी,
ठहरी, वक्त की वो ही धार,
बनी आधार थी,
बस, गिनता रहा मैं ....

थे, जो,
कुछ तुम्हारे, कुछ हमारे!

असीमित चंचलता, यूं सिमेटे,
समय, खुद में लपेटे,
देकर, ठहरी जिंदगी को, चपलता,
एक सूने मन को, चंचलता,
रही यूं रोकती,
बस, देखता रहा मैं .....

थे, जो,
कुछ तुम्हारे, कुछ हमारे!

मंत्रमुग्ध करते, वो स्निग्ध पल,
ओढ़े, होठों पे छल,
रही खींचती, बस, अपनी ही ओर,
कैसी, अनोखी सी वो डोर,
कैसा ये ठौर,
बस, ठहरा रहा मैं .....

गिनता रहा मैं, ठहरे वो पल सारे,
थे, जो,
कुछ तुम्हारे, कुछ हमारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)