Sunday, 16 October 2016

वजूद / अस्तित्व

अस्तित्व की तलाश में, तू उड़ खुले आकाश में.....

ऐ मन के परिंदे, तू उड़ चल हवाओं में,
बह जा कहीं बहती नदी सी उतरकर पहाड़ों में,
स्वच्छंद साँस ले तू खुलकर फिजाओं में।

वजह ढूंढ ले तू अपने वजूद के होने की,
हैं अकेला सब यहाँ, राहें अकेली सबके मन की,
ढूंढने होंगे तुझे, वजह अपने अस्तित्व की।

आजाद सा तू परिंदा अबोध अज्ञान सा,
दिशाहीन रास्तों पर, यूँ ही कहीं क्यूँ भटक रहा,
पथ प्रगति के है, तेरे सामने प्रशस्त खड़ा।

भले ही विपरीत हों, ये झोंके हवाओं के,
सशक्त पंख हैं तेरे,रख भरोसा अपनी उड़ानों पे,
है ये जंग अस्तित्व की, जीतनी होगी तुझे।

ऐ मन के परिंदे, तू उड़ अपनी वजूद ढूंढने,
बहकती नदी बन, बह पहाड़ों के हृदय चीर के,
वजह जिंदगी को दे, वजूद खुद की ढूंढ ले।

तू उड़ खुले आकाश में, अस्तित्व की तलाश में....

No comments:

Post a Comment