कह दे कोई चिलमनों से, जिन्दगी न छीने किसी से...
कभी तरसाती हैं बहुत, ये चिलमन के साये,
दीदार धुंधली सी कर पाती है जब ये निगाहें,
हैं चिलमनों के पार निखरी सी रौशन फिजाएँ,
चिलमनों के इस तरफ, छाई है काली घटाएँ।
जल रहा है दीप कोई चिलमनों के उस तरफ,
गीत कोई बज रही है चिलमनों के उस तरफ,
शाम सुहानी ढल रही चिलमनों के उस तरफ,
धुंधली सी है विरानी, चिलमनों के इस तरफ।
बरपाए है सदियों, जुल्म कितने चिलमनों ने,
चाँदनी थी गगन पे, दीदार की न हो किसी ने,
काटे हैं पल इस तरह, गुजारे हैं जैसे महीने,
जीवन के पलों से खुशी छीन ली हो किसी ने।
कह दे कोई चिलमनों से, जिन्दगी न छीने किसी से...
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