छाँव उन्हीं पलकों के, दिल ढूंढता है रह रहकर....
याद आता हैं वो पहर, जब मिली थी वो नजर,
खामोशी समेटे हुए, हँस पड़ी थी वो नजर,
चिलचिलाती धूप में, छाँव दे गई थी वो नजर,
वो पलकें थी झुकी और हम हुए थे बेखबर......
है दर्द के गाँवों से दूर, झुकी पलकों के वो शहर....
बेचैन सी कर जाती है जब तन्हा ये सफर,
जग उठते हैं दिल में जज्बातों के भँवर,
एकाकी मन तब सोंचता है तन्हाईयों में सिमटकर,
काश वो पलकें बन जाती मेरी हमसफर ........
छाँव उन्हीं पलकों के, दिल ढूंढता है रह रहकर....
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