Wednesday, 17 July 2019

ये विदाई

विदाई, पल ये फिर आई,
बदरी सावन की, नयनन में छाई,
बूँदों से, ये गगरी भर आई,
रोके सकें कैसे, इन अँसुवन को,
ये लहर, ये भँवर खारेपन की,
रख देती हैं, झक-झोर!

भीग चले हैं, हृदय के कोर,
कोई खींच रहा है, विरहा के डोर,
समझाऊँ कैसे, इस मन को,
दूर कहाँ ले जाऊँ, इस बैरन को,
जिद करता, है ये जाने की,
हर पल, तेरी ही ओर!

धड़कता था, जब तेरा मन,
विहँसता था, तुम संग ये आँगन,
कल से ही, ये ढ़ूंढ़ेगी तुझको,
इक सूनापन, तड़पाएंगी इनको,
कोई डोर, तेरे अपनत्व की,
खीचेंगी, तेरी ही ओर!

विदा तो, हो जाओगे तुम,
मन से जुदा, ना हो पाओगे तुम,
ले तो जाओगे, इस तन को,
ले जाओगे कैसे, इस मन को,
छाँव घनेरी, इन यादों की,
राहों को, देंगी मोड़!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

20 comments:

  1. हृदय में कसक पैदा करता अत्यंत सुन्दर सृजन ।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 18 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 17 जुलाई 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  4. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना गुरुवार १८ जुलाई २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  5. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 18.7.19 को चर्चा मंच पर चर्चा - 3400 में दिया जाएगा

    धन्यवाद

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  6. मन को भिगोती सी अत्यंत हृदय स्पर्शी रचना ! बहुत सुन्दर !

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  7. बेहद हृदयस्पर्शी प्रस्तुति

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  8. बेहतरीन सृजन सर
    सादर

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  9. बहुत ही सुन्दर हृदयस्पर्शी रचना...
    विदा तो, हो जाओगे तुम,
    मन से जुदा, ना हो पाओगे तुम,
    ले तो जाओगे, इस तन को,
    ले जाओगे कैसे, इस मन को,
    छाँव घनेरी, इन यादों की,
    राहों को, देंगी मोड़!

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    1. आदरणीया सुधा जी, हृदयतल से आभार। आपके शब्द प्रेरित करते हैं । साधुवाद ।

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