गूंज उठी थी ह्यूस्टन, थी अद्भुत सी गर्जन!
चुप-चुप सा, हतप्रभ था नेपथ्य!
क्षितिज के उस पार, विश्व के मंच पर,
देश ने भरी थी, इक हुंकार?
सुनी थी मैंने, संस्कृति की धड़कनें,
जाना था मैंने, फड़कती है देश की भुजाएं,
गूँजी थी, हमारी इक गूंज से दिशाएँ,
एक व्यग्रता, ले रही थी सांसें!
फाख्ता थे, थर्राए दुश्मनों के होश,
इक भूचाल सा था, फूटा था मन का रोश,
संग ले रहा था, एक प्रण जन-जन,
विनाश करें हम, विश्व आतंक!
आतंक मुक्त हों, विश्व के फलक,
जागे मानवता, आत॔कियों के अन्तः तक,
लक्ष्य था एक, संग हों हम नभ तक,
संकल्प यही, पला अंत तक!
चाह यही, समुन्नत हों प्रगति पथ,
गतिमान रहे, विश्व जन-कल्याण के रथ,
अवसर हों, हाथों में हो इक मशाल,
रंग हो, नभ पे बिखरे गुलाल!
महा-शक्ति था, जैसे नत-मस्तक,
पहचानी थी उसने, नव-भारत की ताकत,
जाना, क्यूँ अग्रणी है विश्व में भारत!
आँखों से भाव, हुए थे व्यक्त!
गूंजी थी ह्यूस्टन, जागे थे सपने,
फलक पर अब, संस्कृति लगी थी उतरने,
हैरान था विश्व, हतप्रभ था नेपथ्य!
निरख कर, भारत का वैभव!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में " गुरुवार 26 सितम्बर 2019 को साझा की गई है......... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteआभार आदरणीया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (27-09-2019) को "महानायक यह भारत देश" (चर्चा अंक- 3471) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये। --हार्दिक शुभकामनाओं के साथ
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
आभार आदरणीय
Deleteआतंक मुक्त हों, विश्व के फलक,
ReplyDeleteजागे मानवता, आत॔कियों के अन्तः तक,
लक्ष्य था एक, संग हों हम नभ तक,
संकल्प यही, पला अंत तक!
इस संकल्प को सत सत नमन ,बेहतरीन रचना ,सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया कामिनी जी।
Deleteफाख्ता थे, थर्राए दुश्मनों के होश,
ReplyDeleteइक भूचाल सा था, फूटा था मन का रोश,
संग ले रहा था, एक प्रण जन-जन,
विनाश करें हम, विश्व आतंक!
आतंक मुक्त हों, विश्व के फलक,
जागे मानवता, आत॔कियों के अन्तः तक,
लक्ष्य था एक, संग हों हम नभ तक,
संकल्प यही, पला अंत तक!... बहुत ही सुन्दर सृजन सर
सादर
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अनीता जी।
Deleteनिरख कर, भारत का वैभव!
ReplyDeleteशब्द शब्द एकजुट हो उल्लासित है इस अभिव्यक्ति में ... उत्कृष्ट लेखन 💐💐
बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया सदा जी।
Deleteइस के विश्वव्यापी प्रभाव को कौन नकार सकता है -कितना अच्छा हो आतंक के पर हमेशा को काट दिये जाएँ.आशाएँ तो बहुत हैं .
ReplyDeleteआभार आदरणीया प्रतिभा जी।
Deleteसमसामयिक बौद्धिकता से भरपूर सृजन पुरुषोत्तम जी | ये आपकी विशेष प्रतिभा की परिचायक है | सादर --
ReplyDeleteसदैव कृतज्ञ हूँ आपका आदरणीया रेणु जी। आपका स्नेह ही मेरा संबल है।
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