Sunday, 7 June 2020

अरमानों के तारे

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

पहुँच से दूर रखकर, सो रहा वो बेखबर,
मान लूँ कैसे, वो है रहबर!
असीम इक्षाएं जगी हैं,
मन में कितनी आशाएं, दबी हैं,
एहसास, जागे हैं सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

मैं, पी ना पाया, अपनी आहों का प्याला,
दूर कितना, है वो उजाला!
कँपकपाते, ये अधर हैं,
अंधेरों में, लड़खड़ाए से स्वर हैं,
बेसुरे हैं, ये गीत सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

यूँ तो, बड़े ही खूबसूरत हैं एहसास उसके,
पर जाऊँ कैसे, पास उसके,
मुश्किल सा, ये सफर है,
शायद वो, रहबर ही बेखबर है,
डगमगाए हैं, आस सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

शहर अरमानों के, वो बसे हैं आसमां पर,
ढूंढते हम, जमीं पर दर-बदर,
पर, अभी तो दोपहर है,
उस रात तक, किसको सबर है,
मंजिल से, अंजान सारे!

टाँक डाले, अरमानों के तारे,
आसमां पे, सारे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

12 comments:

  1. Replies
    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी।

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  2. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज रविवार 07 जून जून 2020 को साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  3. बहुत खूब पुरुषोत्तम जी , अंबर के विशाल पट पर बसे इस तारों के अभिनव शहर को एक कवि की दृष्टि ही निहार सकती है। सुकोमल सृजन आपकी विशिष्ट शैली में 👌👌👌 हार्दिक शुभकामनायें और बधाई🙏🙏

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  4. वाह बहुत ही सुन्दर रचना, सुंदर बिंबों से सजी भावप्रवण रचना हेतु बधाई आदरणीय

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया अभिलाषा जी।

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  5. मैं, पी ना पाया, अपनी आहों का प्याला,
    दूर कितना, है वो उजाला!
    कँपकपाते, ये अधर हैं,
    अंधेरों में, लड़खड़ाए से स्वर हैं,
    बेसुरे हैं, ये गीत सारे!..... वाह... अवर्णनीय... बहुत खूब 👌👌

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  6. ऐसे चंद्र खिलौनों के लिए न जाने हृदय क्यों तड़पता है, जो हमसे बेख़बर है।
    भावपूर्ण सृजन।

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