Sunday, 7 June 2020

फसाने

कल के हकीकत, आज लगते हैं फसाने!
खुद हो चले हम, कितने बेगाने!

गुम है हकीकत, गुमनाम हैं गुजरे हुए कल,
कौन जाने, जीवंत कितने थे वो पल,
कोई कहानी सी, बन चुकी वो,
यादों की निशानी सी, बन चुकी वो,
कोरी हकीकत वो, कौन जाने!

कल के हकीकत, आज लगते हैं फसाने!
खुद हो चले हम, कितने बेगाने!

छूट ही जाते हैं, कहीं उन महफ़िलों में हम,
जैसे रूठ जाते हैं, वो गुजरे हुए क्षण,
लौट कर फिर, न आते हैं वो,
छू कर तन्हाई में, गुजर जाते हैं वो,
बीते वो फसाने, कौन जाने!

कल के हकीकत, आज लगते हैं फसाने!
खुद हो चले हम, कितने बेगाने!

ठहरे हैं आज भी हम, उन्हीं अमराइयों में,
एकाकी से पड़े हैं, इन तन्हाईयों में,
बन कर गूंजती है, आवाज वो
मूंद कर नैन, सुनता हूँ आवाज वो,
ख़ामोशियाँ वो, कौन जाने!

कल के हकीकत, आज लगते हैं फसाने!
खुद हो चले हम, कितने बेगाने!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. बहुत सुंदर! वाकई हम बेगाने हो चले हैं, खुद से!

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    1. जी बिल्कुल । बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय विश्वमोहन जी ।

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  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (08-06-2020) को 'बिगड़ गया अनुपात' (चर्चा अंक 3726) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    --
    -रवीन्द्र सिंह यादव


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  3. कल के हकीकत, आज लगते हैं फसाने!
    यही सत्य हे
    बहुत बढ़िया

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय । आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ।

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  4. छूट ही जाते हैं, कहीं उन महफ़िलों में हम,
    जैसे रूठ जाते हैं, वो गुजरे हुए क्षण,
    लौट कर फिर, न आते हैं वो,
    छू कर तन्हाई में, गुजर जाते हैं वो,
    बीते वो फसाने, कौन जाने!... बहुत खूब ल‍िखा स‍िन्हा साहब

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    1. हार्दिक आभार आदरणीय । आपका स्वागत है मेरे ब्लॉग पर ।

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  5. ठहरे हैं आज भी हम, उन्हीं अमराइयों में,
    एकाकी से पड़े हैं, इन तन्हाईयों में,
    बन कर गूंजती है, आवाज वो
    मूंद कर नैन, सुनता हूँ आवाज वो,
    हम्म्म। .. सोच को अपने साथ कही और बहा ले जाने वाली रचना

    ऐसे भावो को वो समझ सकता हैं जिसने अपने भूतकाल में अमराइयों की छांव में शाम बितायी होंगी

    बहुत प्यारी रचना
    सादर प्रणाम

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    1. हार्दिक आभार आदरणीया जोया जी। यूँ भी तन्हाईयों को पढ़ पाना आसान नहीं । हम अपने ही इति की परछाईंयों में घिरे होते हैं फिर भी तन्हा होते हैं ।
      रचना पर आपकी प्रतिक्रिया पाकर मैं हर्षित हूँ ।

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  6. बहुत सुंदर रचना।

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