रह जाए जैसे, जिज्ञासा!
रह गए हो तुम, वैसे ही, जरा सा!
नजर में समेटे, दिव्य आभा,
मुखर, नैनों की भाषा,
चुप-चुप, बड़े ही, मौन थे तुम,
न जाने, कौन थे तुम?
हौले-हौले, प्रकंपित थी हवा,
विस्मित, थे क्षण वहाँ,
कुछ पल, वहीं था, वक्त ठहरा,
जाने था, कैसा पहरा!
हैं तेज कितने, वक्त के चरण,
न ओढ़े, कोई आवरण,
पर रुक गए थे, याद बनकर,
जाने, कैसे वक्त उधर!
थे शामिल, तुम्हीं हर बात में,
मुकम्मिल, जज्बात में,
उलझे, सवालों में तुम ही थे,
न जाने, तुम कौन थे!
उठ खड़े थे, प्रश्न अन-गिनत,
थी, सवालों की झड़ी,
हर कोई, हर किसी से पूछता,
न जाने, किसका पता!
गर जानता, तुझको जरा सा,
संजोता, एक आशा,
भटकता न यूँ, निराश होकर,
न जाने, किधर-किधर!
रह जाए जैसे, जिज्ञासा!
रह गए हो तुम, वैसे ही, जरा सा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
रह गए हो तुम, वैसे ही, जरा सा!
नजर में समेटे, दिव्य आभा,
मुखर, नैनों की भाषा,
चुप-चुप, बड़े ही, मौन थे तुम,
न जाने, कौन थे तुम?
हौले-हौले, प्रकंपित थी हवा,
विस्मित, थे क्षण वहाँ,
कुछ पल, वहीं था, वक्त ठहरा,
जाने था, कैसा पहरा!
हैं तेज कितने, वक्त के चरण,
न ओढ़े, कोई आवरण,
पर रुक गए थे, याद बनकर,
जाने, कैसे वक्त उधर!
थे शामिल, तुम्हीं हर बात में,
मुकम्मिल, जज्बात में,
उलझे, सवालों में तुम ही थे,
न जाने, तुम कौन थे!
उठ खड़े थे, प्रश्न अन-गिनत,
थी, सवालों की झड़ी,
हर कोई, हर किसी से पूछता,
न जाने, किसका पता!
गर जानता, तुझको जरा सा,
संजोता, एक आशा,
भटकता न यूँ, निराश होकर,
न जाने, किधर-किधर!
रह जाए जैसे, जिज्ञासा!
रह गए हो तुम, वैसे ही, जरा सा!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" गुरुवार 25 जून 2020 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
सादर आभार आदरणीय ।
Deleteबहुत ख़ूब!!!
ReplyDeleteशुक्रिया आदरणीय ।
Deleteबहुत सुंदर ।
ReplyDeleteमन की संवेदनाओं को सर्वर देती अभिनव अभिव्यक्ति।
स्वर पढ़े
Deleteहार्दिक आभार आदरणीया
Deleteसुन्दर गीत
ReplyDeleteबहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय ।स्वागत है आपका इस पटल पर।
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