Tuesday, 14 September 2021

संगी सांझ के

ओ संगी मेरे, मेरी सांझ के...

यूँ न फेरो उधर, तुम अपनी आँखें,
देखो इधर, अभी है सवेरा,
घेरे है, तुझको, ये कैसा अंधेरा, 
सिमटने लगा, क्यूँ मुझसे मेरा सवेरा,
आ रख लूँ, तुझे थाम के!

ओ संगी मेरे, मेरी सांझ के...

तू यूँ न कर, जल्दी जाने की जिद, 
यूँ चल कहीं, वक्त से परे,
खाली ये पल, चल न, संग भरें,
छिनने लगे, क्यूँ सांझ के मेरे सहारे,
आ रख लूँ, तुझे बांध के!

ओ संगी मेरे, मेरी सांझ के...

यूँ न देख पाऊँ, क्लांत चेहरा तेरा,
तमस सी, अशान्त साँसें,
क्यूँ न उधार लूँ, वक्त, सांझ से,
भर लूँ जिन्दगी, उभरते विहान से,
आ रख लूँ, तुझे मांग के!

ओ संगी मेरे, मेरी सांझ के...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)
...............................................
- जाने क्यूँ! हो चला, 
सांझ से पहले, सांझ का अंदेशा,
बिखरी सी, लगे हर दिशा!
जाने क्यूँ!

4 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज बुधवार 15 सितम्बर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. बहुत अच्छी रचना।

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