अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
देकर आधार, अनन्त सिधार गए तुम,
देकर अनुभव का, सार गए तुम,
पर, किस पार गए तुम?
फिर, ढूंढ न पाया!
देकर अनुभव का, सार गए तुम,
पर, किस पार गए तुम?
फिर, ढूंढ न पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
आँखों में मेरी, जीवन्त सा चेहरा तेरा,
है ख्यालों पर मेरी, तेरा ही पहरा,
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
है ख्यालों पर मेरी, तेरा ही पहरा,
पर, दर्शन वो अन्तिम तेरा,
मेरे ही, भाग्य न आया!
मेरे ही, भाग्य न आया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
है भारी जीवन पर, इक वो ही व्यथा!
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
कहीं, खत्म हुई जो कथा!
वही, फिर याद आया!
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
कहीं, खत्म हुई जो कथा!
वही, फिर याद आया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
यूँ तो संग रहे तुम, करुणामय यादों में,
गूंज तुम्हारी, है अब भी कानों में,
पर, भीगी सी पलकों में!
तुझको, ना भर पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
तुम, रहे बन कर, स्वप्न कोई अनदेखा,
टूटकर, जैसे फिर बनती हो रेखा,
पर, वो ही मूरत अनोखा!
है, आँखों में समाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
थी विस्मयकारी, तेरी सारगर्भित बातें,
शेष है जीवन की, वो ही सौगातें,
और, लम्बी होती ये रातें!
इन, रातों नें भरमाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
हर पल भारी, है तेरे विरह की व्यथा,
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
भूल पाऊँ कैसे, तुमको सर्वथा?
हार चला, भले ही तुझको,
अन्तर्मन, तुझे ही पाया!
अन्त समय, पापा, मैं तुझको देख न पाया!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
🙏🏻🙏🏻🙏🏻
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" रविवार 26 सितम्बर 2021 को साझा की गयी है....
ReplyDeleteपाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
शुक्रिया
Delete🙌
ReplyDeleteशुक्रिया
Deleteअत्यंत भावपूर्ण रचना।
ReplyDeleteश्रद्धा सुमन🙏🙏
प्रणाम
सादर।
शुक्रिया
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