टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने....
ह्रदय के ज़ख्म सारे, गाकर गीत हारे,
हरे, ये ज़ख्म उभरे,
कौन, इन जख्मों को भरे!
टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने....
रही जब तक, शिला, हर कोई मिला,
गिला, क्यूं ना करे,
लगाए कौन, मन पे पहरे!
टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने....
तोड़ा था, उसी ने, जिसने यूं बिखेरा,
अधूरा, ये गीत मेरा,
वो सुने, ना, विलाप करे!
टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने....
भर ही जाएं, ना कुरेदो ज़ख़्म कोई,
रहने दो, यूं ही पड़ा,
सह लूंगा, राह की ठोकरें!
टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने....
बुलाएंगे ये कल, पुकारेंगे आह मेरे,
लुभाएंगे, ज़ख्म हरे,
देखें, कौन जख्मों को भरे!
टूटे पत्थरों के गीत, कोई क्यूं सुने....
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
तोड़ा था, उसी ने, जिसने यूं बिखेरा,
ReplyDeleteअधूरा, ये गीत मेरा,
वो सुने, ना, विलाप करे...बहुत सुंदर
हार्दिक आभार ....
Deleteआपकी लिखी रचना "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" आज शनिवार 02 अक्टूबर 2021 शाम 3.00 बजे साझा की गई है.... "सांध्य दैनिक मुखरित मौन में" पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
Deleteवाह-वाह! बहुत-खूब। ढेरों बधाईयाँ। सादर।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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ReplyDeleteहार्दिक आभार ....
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ReplyDeleteमैंने यह पर जोक्स कहानियां, शायरी और भी अच्छी चीजें पब्लिश करता हु । आप हमारी मदद कर सकते है आप एक बैकलिंक दे कर। धन्यवाद
हार्दिक आभार ....
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