Friday, 10 December 2021

रिक्त क्षणों का क्या?

उन रिक्त क्षणों का क्या?

कंपन, गुंजन, खनखन, बस कहने को हैं,
कलकल, छलछल, ये पल,
बहती ये नदियां, बस बहने को हैं,
सिक्त हुईं, फिर छलक पड़ी, दो आँखें,
उन धारों के, पीछे क्या?

उन रिक्त क्षणों का क्या?

तट पे आकर, टकरातीं सागर की लहरें,
शायद, आती हैं ये कहने,
विचलन, सागर की, बढ़ने को हैं,
सिमट चुकी, कितनी ही नदियां उनमें,
उस पानी के, पीछे क्या?

उन रिक्त क्षणों का क्या?

रिम-झिम-रिम-झिम, बारिश होने को है,
भीगेंगे, सूखे ये सारे कण,
ये उद्विगनता, अब बढ़ने को है,
फिर लौट पड़ेंगे, लहराते बादल सारे, 
उन बौछारों के पीछे क्या?

उन रिक्त क्षणों का क्या?

यूं अग्नि का जलना, मौसम का छलना,
यूं रुत संग रंग बदलना,
ये फितरत, जारी सदियों से है,
रात ढ़ले, जब ढ़ल जाते ये सारे तारे,
उन तारों के, पीछे क्या?

उन रिक्त क्षणों का क्या?

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

13 comments:

  1. रिक्त क्षणों का क्या ...
    जीवन बहुआयामी है और निरंतर भी है ...
    ऐसे ही कुछ पलों के ध्यान में रख कर बुनी रचना .... बहुत सुन्दर ...

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  2. आपकी इस प्रस्तुति का लिंक 11 दिसंबर 21 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4275 में दिया जाएगा
    धन्यवाद
    दिलबाग

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  3. रिक्त क्षण वास्तव में कभी रिक्त नहीं होते
    बहुत लाजवाब वर्णन

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  4. बहुत ही सराहनीय सृजन।

    यूं अग्नि का जलना, मौसम का छलना,
    यूं रुत संग रंग बदलना,
    ये फितरत, जारी सदियों से है,
    रात ढ़ले, जब ढ़ल जाते ये सारे तारे,
    उन तारों के, पीछे क्या?... वाह!

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  5. बहुत सुंदर,रिक्त क्षण' यादों में विचरण कराते हैं

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