हुआ क्या?
इस उम्र के उड़ते परिंदों को!
खो चला वो, ख्वाहिशों के बादलों में,
जा छुपा, किन आंचलों में,
खो चुकी कहीं, नादान सी सारी अटखेलियां,
रह गई, उम्र, बन कर पहेलियां,
हुआ क्या?
इस उम्र के उड़ते परिंदों को!
डरने लगा वो, विराने उन किनारों से,
प्रतिबिम्ब के, नजारों से,
शायद, डराने लगी हैं, अंजानी सी आकृतियां,
आईनों से, झांकती परछाईयां,
हुआ क्या?
इस उम्र के उड़ते परिंदों को!
फिर ढ़ूंढ़ता वो, ठंढ़े झौंके मलय के,
ठहरे, वो लम्हे समय के,
ऊंघती इन वादियों में, गूंजती सी शहनाईयां,
उन संग, गुजारी हुई तन्हाईयां,
हुआ क्या?
इस उम्र के उड़ते परिंदों को!
इक सत्य वो, क्यूं नहीं, स्वीकारता,
बातें, क्यूं, नहीं मानता,
पहलू, दूसरा ही, वक्त के इस बहते भंवर का,
फड़फड़ाता, यूं जिद पर अड़ा,
हुआ क्या?
इस उम्र के उड़ते परिंदों को
डरने लगा वो, विराने उन किनारों से,
ReplyDeleteप्रतिबिम्ब के, नजारों से,
शायद, डराने लगी हैं, अंजानी सी आकृतियां,
आईनों से, झांकती परछाईंया,
हुआ क्या?
इस उम्र के उड़ते परिंदों को!
..मन को छूती सराहनीय रचना, बहुत बधाई ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर रविवार 06 मार्च 2022 को लिंक की जाएगी ....
ReplyDeletehttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!
!
सादर आभार
Deleteउम्र के परिंदे यूँ ही उड़ जाते हैं ।
ReplyDeleteभावपूर्ण रचना ।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया।।।
Delete