ढ़ाई युग, ढ़ाहे हैं अब तक....
कुछ पन्थ बने, वो पन्ने अब ग्रन्थ बने,
लिखते-लिखते, कल तक!
देखता हूँ, अब, उसी पन्थ पर,
पीछे, मुड़-मुड़ कर,
आ घेरती है मुझे,
अपनी ही, व्यक्तित्व की गहरी परछाईं,
जो संग चला, संग-संग ढ़ला,
ढ़ाई युग तक!
परिप्रेक्ष्य ही, बदल चुके अब,
परछाईं सा, वो रब,
कहाँ विद्यमान में!
खाली कुछ पल, हो चले प्रभावशाली,
गहराते रहे, यूँ सांझ के साए,
अंधियारों तक!
छूटा, शेष कहीं, उन ग्रन्थों में,
फर-फराते, पन्नों पर,
जीवंतता खोकर,
व्यक्तित्व का, शायद, दूसरा ही पहलू,
उभरे ना, इक दूसरी परछाईं,
दूजे पन्नों तक!
मगर, इक शेष, खड़ा सामने,
लक्ष्य, हैं कई साधने,
वो युग के संबल,
संग खड़े, अनुभव के अक्षुण्ण पल,
और, कहीं साधक सी जिद,
पले प्राणों तक!
ढ़ाई युग, ढ़ाहे हैं अब तक....
यूँ युग और ढ़हें, नवपन्थ, नवग्रन्थ बनें,
लिखते-लिखते, कल तक!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
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30.03.1992 से 30.03.2022
कुछ यादगार तस्वीरें और पड़ाव ....
Year 1992
Year 2022Year 1992

Year 2022






ReplyDeleteजी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १ अप्रैल २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सादर आभार आदरणीया
Deleteआपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा आज बुधवार (01-04-2022) को चर्चा मंच "भारत ने सारी दुनिया को, दिया शून्य का ज्ञान" (चर्चा अंक-4387) पर भी होगी!
ReplyDelete--
सूचना देने का उद्देश्य यह है कि आप उपरोक्त लिंक पर पधार कर चर्चा मंच के अंक का अवलोकन करे और अपनी मूल्यवान प्रतिक्रिया से अवगत करायें।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार
Deleteवाह!पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब ! लाजवाब अभिव्यक्ति ।ये सिलसिला ऐसे ही चलता रहे ।
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया शुभा जी
Deleteजीवन का हर दिन ग्रंथ का नया पन्ना ही होता है ।।
ReplyDeleteभावपूर्ण अभिव्यक्ति ।।
बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी
Deleteबहुत खूब!
ReplyDeleteआभार आदरणीय ह्रदयेश जी
Deleteलाजबाब रचना है
ReplyDeleteये सिलसिला जारी रहे
जी, बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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