आपा-धापी में....
शुकून, इक पल मिल सके जब....तब, दीर्घ श्वासें भर सकूंगा,
तुमसे, मिल सकूंगा!
यूँ तो, आपा-धापी में, भूल बैठा खुद ही को,
रहा निरंतर, खुद से ही निरुत्तर,
कहता, क्या किसी को!
शिकायत तुम जो करते, मैं जाग जाता,
सोए एहसासों को जगाता,
रहे तुम साथ ही, पर मैं!
साथ था कब?
आपा-धापी में....
शुकून, इक पल मिल सके जब....
तब, दीर्घ श्वासें भर सकूंगा,
तुमसे, मिल सकूंगा!
खिली इस बागवां में, अधखिली ही ये कली,
मुरझा चुके, मन के फूल कितने,
आ चुभे, यूँ शूल कितने,
इस राह पर, तुम, जताते अधिकार गर,
रुक ही जाता, मैं रास्तों पर,
सहते गए, तुम धूप सारे,
गुम रहा मैं!
आपा-धापी में....
शुकून, इक पल मिल सके जब....
तब, दीर्घ श्वासें भर सकूंगा,
तुमसे, मिल सकूंगा!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत खूब। सुंदर पंक्तियाँ।
ReplyDeleteआहार आदरणीय नितीश जी ।।।।
Deleteआपकी इस प्रस्तुति का लिंक 24-3-22 को चर्चा मंच पर चर्चा - 4379 में दिया जाएगा| चर्चा मंच पर आपकी उपस्थिति सभी चर्चाकारों की हौसला अफजाई करेगी
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीय
Deleteसुंदर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
Deleteबहुत सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया
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