Wednesday, 4 October 2023

मद्धिम रात

हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!

स्वप्न सरीखी, अनुभूतियां,
कंपित होते, कितने ही पल,
उलझे हैं, इन आंखों पर,
ज्यूं, जागी है रात!

हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!

सुलझे कब, ऐसे उलझन,
विस्मित, दो तीर, खड़ा मन,
अपना लूं, सुबह के पल,
या, मद्धिम सी रात!

हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!

भ्रमित करे, ये मृगतृष्णा,
खींचे स्वप्न भरे कंपित पल,
सहलाए, भूले मन को,
हौले-हौले, ये रात!

हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!

सुबह के, ये भीगे पात,
अलसाई, उंघती हर छटा,
वो नन्हीं सी, इक घटा,
कहती अधूरी बात!

हौले-हौले, मद्धिम होती रही रात,
सुबह तक, अधूरी हर बात!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

7 comments:

  1. सुबह के, ये भीगे पात,
    अलसाई, उंघती हर छटा,
    वो नन्हीं सी, इक घटा,
    कहती अधूरी बात... अतिसुन्दर रचना

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  2. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर गुरुवार 05 अक्टूबर 2023 को लिंक की जाएगी ....

    http://halchalwith5links.blogspot.in
    पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

    !

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  3. बहुत ही सुन्दर हृदय स्पर्शी रचना

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  4. यहाँ कोई बात पूरी होती नहीं, सदा अधूरी ही रहती है हर बात, सुंदर रचना !

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  5. वाह! पुरुषोत्तम जी ,बहुत खूब! सही कहा आपनें ...कुछ बातें अधूरी ही रह जाती हैं

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