निशांत पलों को, आराम जरा!
चहक कर, बहकेगी निशिगंधा,
और, जागेंगे निशाचर,
रह-रह कर, महकेंगे स्तब्ध पल,
ओढ़, तारों का चादर,
मुस्काएंगी, दिशांत जरा!
निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,
निशांत पलों को, आराम जरा!
कहीं, खामोश जुबांनें बोलेंगी,
वो, राज कई खोलेंगी,
गुजरेंगी, हद से जब उनकी बातें,
देकर, भींनी सौगातें,
भीगो जाएंगे, नैन जरा!
निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,
निशांत पलों को, आराम जरा!
कलकल सी ये स्निग्ध निशा,
चमचम, वो कहकशां,
पहले, जी भर कर, कर लें बातें,
फिर मिलने के वादे,
आपस में, कर लें जरा!
निशा के पल ये, दे नयनों को विराम जरा,
निशांत पलों को, आराम जरा!
भावभीनी सी रचना
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 28 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteहर बार की तरह बेहतरीन रचना
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteBeautiful
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