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Tuesday, 20 September 2022

प्रेमांकुर

प्रेमांकुर
अकथ्य, अकल्पनीय, प्रेम के ये दृश्य...

पतझड़ों सा है रंग, पर, बसन्त सा उमंग,
सूखे से बीज में, जागे अंकुरण,
उम्र से परे, नर्म सा ये चुभन,
एहसास, फिर से वही,
लिए ही आते हैं, प्रेम के ये वृक्ष!

अकथ्य, अकल्पनीय, प्रेम के ये दृश्य...

60 से बस चार कम, अब 56 के हैं हम,
प्रेम, इस उम्र में, अब क्या करें!
पर, रुकते हैं कब ये अंकुरण,
इस बीज के प्रस्फुटन,
उग ही आते हैं, प्रेम के ये वृक्ष!

अकथ्य, अकल्पनीय, प्रेम के ये दृश्य...

बह तो जाएंगे हम, उम्र के इस बहाव में,
ओस बन जाएंगे, इस पड़ाव में,
जगा के, सर्द सी इक छुअन, 
देकर, दर्द का चलन,
संवर ही जाएंगे, प्रेम के ये वृक्ष!

अकथ्य, अकल्पनीय, प्रेम के ये दृश्य...

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Friday, 20 May 2016

पुकारता मन का आकाश

पुकारता है आकाश, ऐ बादल! तू फिर गगन पे छा जा!

बार बार चंचल बादल सा कोई,
आकर लहराता है मन के विस्तृत आकाश पर,
एक-एक क्षण में जाने कितनी ही बार,
क्युँ बरस आता है मन की शान्त तड़ाग पर।

घन जैसी चपल नटखट वनिता वो,
झकझोरती मन को जैसे हो सौदामिनी वो,
क्षणप्रभा वो मन को छल जाती जो,
रुचिर रमणी वो मन को मनसिज कर जाती जो।

झांकती वो जब अनन्त की ओट से,
सिहर उठता भूमिधर सा मेरा अवधूत मन,
अभिलाषा के अंकुर फूटते तब मन में,
जल जाता है यह तन विरह की गहन वायुसखा में।

मन का ये आकाश आज क्युँ है सूना सा,
कही गुम सा वो बादल क्षणप्रभा है वो खोया सा,
सूखे है ये सरोवर मन के, फैली है निराशा,
पुकारता है आकाश, ऐ बादल! तू फिर गगन पे छा जा!

Tuesday, 26 April 2016

ऐ मन तू सपने ही देख

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर.......,

तेरी भ्रम की दुनियाँ ही है अच्छी,
तू नहीं जानता सत्य मे है कितनी पीड़ा,
सत्य से अंजान तेरी अपनी ही है इक दुनिया,
जहाँ दु:ख का बोध सर्वथा नही,
दुःख हो भी तो, हो बस सपनों जैसे ही क्षणभंगूर।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर......

सपनों मे तेरे क्या-क्या दिख जाता है,
बेगानों मे भी कोई अपना सा लग जाता है,
कष्ट-विषाद के कण हो जाते हैे धुमिल,
ऐ मन, इन क्षणिक एहसासों को बांधे रख तू खुद में,
ताकि मै भी कर पाऊँ सुख बोध कुछ इनके पल भर।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर........

काश, कभी टूटते ना मन के ये सपने,
इन्सानों के मन मे हरपल फूटते नए इक सपने,
गम के इन अंकुरों से होते सदा हम अंजाने,
विछोह विषाद के ये पल जीवन से होते बेगाने,
हर दिल में बहते वसुधैव कुटुम्बकम के ही बस झरने।

ऐ मन, तू बस सपने ही देखता रह निरंतर........