झूलती डाली, उड़ते-चहकते विहग,
जैसे, प्रसंग कोई छिड़ा हो,
गहन सी, कोई बात हो,
या, विहग, बिन-बात ही भिड़ा हो,
उलझ कर, साथ में,
फुर्र-फुर्र, वो कहीं उड़ा हो!
झूलती डाली, उड़-उड़ आते विहग,
प्रासंगिक सी, वो बात हो,
शुरु, फिर आप्रवास हो,
या, वियोग ही, विहग का बड़ा हो,
तीर, लग कर कोई,
जोड़ा, विहग का, मरा हो!
झूलती डाली, दूर-दूर तकते विहग,
बहेरी, पास ही खड़ा हो,
प्रसंग, वो ही बड़ा हो,
प्रश्न-चिन्ह, मानवता पर, लगा हो,
स्वार्थी, बहेरी ने ही,
लघु-मन को, झकझोरा हो!
झूलती डाली, विरह में डूबे विहग,
प्रसंग, जीवन से बड़ा हो,
जंग, कोई छिड़ा हो,
प्रश्न-चिन्ह, अस्तित्व पर लगा हो,
उस चह-चहाहट में,
दर्द ही, विहग का घुला हो!
झूलती डाली, उड़ते-चहकते विहग,
जैसे, प्रसंग कोई छिड़ा हो,
गहन सी, कोई बात हो,
या, विहग, बिन-बात ही भिड़ा हो,
उलझ कर, साथ में,
फुर्र-फुर्र, वो कहीं उड़ा हो!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
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