Showing posts with label खत. Show all posts
Showing posts with label खत. Show all posts

Saturday, 17 July 2021

अंकित यादें

और कुछ तो नहीं, संग मेरे.....

पुराने कुछ पल, सिमटे हैं तेरे खत में,
घुंघरुओं सी, बजती लिखावटें,
अब भी, करती हैं बातें,
कभी कोई जिद,
और कभी, कोई जिद न करने की कस्में,
निभ न पाई, जो, वो रस्में,
कुछ भी नहीं, वश में!
बह जाता हूँ, अब भी उसी पल में.....

और कुछ तो नहीं, संग मेरे.....

इक मेरा वश, खुद ही नहीं, वश में,
एक मेरा मन, है कहाँ संग में,
भटके, कोई बंजारा सा,
जाने कौन दिशा,
ढ़ल चले, जीवन के रंग, ढ़ल चली निशा,
धूमिल हुई, सारी कहकशाँ,
ढ़ूँढ़ता, उनके ही निशां,
बह जाता हूँ, अब भी उसी छल में.....

और कुछ तो नहीं, संग मेरे.....

धुंधलाने लगे हैं, अब वो सारे मंज़र,
तुम्हारी खत के, वो सारे अक्षर,
पर हुए, मन पे टंकित,
तेरे शब्द-शब्द,
तन्हा पलों को, वो कर जाते हैं निःशब्द,
और गूंजते हैं, वो ही शब्द,
महक उठते हैं, वो पल,
बह जाता हूँ, अब भी उसी कल में.....

और कुछ तो नहीं, संग मेरे.....

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Sunday, 10 January 2021

वो खत

फिर वर्षों सहेजते!
किताबों में रख देने से पहले,
खत तो पढ़ लेते!

यूँ ना बनते, हम, तन्हाई के, दो पहलू,
एकाकी, इन किस्सों के दो पहलू,
तन्हा रातों के, काली चादर के, दो पहलू!
यूँ, ये अफसाने न बनते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!

वो चंद पंक्तियाँ नहीं, जीवन था सारा,
मूक मनोभावों की, बही थी धारा,
संकोची मन को, कहीं, मिला था किनारा!
यूँ, कहीं भँवर न उठते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!

बीती वो बातें, कुरेदने से क्या हासिल,
अस्थियाँ, टटोलने से क्या हासिल,
किस्सा वो ही, फिर, दोहराना है मुश्किल!
यूँ, हाथों को ना मलते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!

अब, जो बाकि है, वो है अस्थि-पंजर,
दिल में चुभ जाए, ऐसा है खंजर,
एहसासों को छू गुजरे, ये कैसा है मंज़र!
यूँ, छुपाते या दफनाते,
किताबों में रख देने से पहले,
वो खत तो पढ़ लेते!
फिर वर्षों सहेजते!
किताबों में रख देने से पहले,
खत तो पढ़ लेते!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday, 9 February 2019

खत

खत कितने ही, लिख डाले हमनें,
कितने ही खत, लिखकर खुद फाड़ डाले,
भोले-भाले, कितने हम मतवाले!

बेनाम खत, खुद में ही गुमनाम खत,
अनाम खत, वो बदनाम खत,
अंजान खत, उनके ही नाम खत,
खत, मेरी ही अरमानों वाले,
कितने ही खत, लिखकर फाड़ डाले!

अनकहे शब्दों में, ढ़लकर गाते खत,
हृदय की बातें, कह जाते खत,
भीगते खत, नैनों को भिगाते खत,
खत, मेरी ही जागी रातों वाले,
कितने ही खत, लिखकर फाड़ डाले!

करुणा में डूबे, भाव-गीत वाले खत,
प्रेम संदेशे, ले जाने वाले खत,
पीले खत, सुनहले रंगों वाले खत,
खत, मेरी हृदय के छालों वाले,
कितने ही खत, लिखकर फाड़ डाले!

खत कितने ही, लिख डाले हमनें,
कितने ही खत, लिखकर खुद फाड़ डाले,
भोले-भाले, कितने हम मतवाले!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा