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Saturday, 26 March 2016

संबंधों का कर्ज मोक्ष पर भारी

धागे ये संबंधों के जुड़े स्नेह की गांठो से,
कब कैसे जुड़ जाते ये बंधन साँसों की झंकारों से,
ममतामयी स्पर्श स्नेहिल मधुर इन गाँठों का,
धागे ये कच्चे पर बंधन अटूट ये जन्मों-जन्मों का।

अनगिनत संबंध जीवन के भूले बिसरे से,
जीवन की आपाधापी में तड़पते कुचले-मसले से,
विरह की टीस सी उठती फुर्सत के क्षण में,
गतिशीलता जीवन की भारी स्नेह, दुलार, ममता पे।

आधार स्तम्भ जीवन के, संबंधों के दायरे यही,
कितने ही स्नेहमयी गोदों में नवजात मुस्कुराते यहीं,
कर्ज भारी इन संबंधों का ढ़ोते जीवन भर यहीं,
क्या उरृण हो पाऊँगा इस कर्ज से, मैं सोचता यही?

कर्ज इस बंधन का शायद जीवन पर है भारी,
जन्मों का यह चक्र मानव के कर्ज चुकाने की तैयारी,
गरिमामयी संबंधों को फिर से जीने की यह बारी,
मोह संबंधों के स्नेहिल बंधन के मोक्ष पर है मेरी भारी।

Saturday, 23 January 2016

मिट्टी का कर्ज

ओ प्राणदायक मिट्टी तेरा कर्ज उतारूँ कैसे?

हार-माँस काया मिट्टी का बना,
तेरे कण की बूँद से गया कढ़ा,
अंकपाश तेरे जग पला- बढ़ा,
भूख प्यास मे तुझको ही काटा।

ओ जीवनरक्षक मिट्टी तेरा कर्ज उतारूँ कैसे?

स्वर्ण हरितिमा पत्तों को देता,
अंश जीवन का तुझमे पलता,
मूक प्राणमूल जीवन मे भरता,
मृत्यु समय अपने उर भर लेता।

ओ कष्टनिवारक मिट्टी तेरा कर्ज उतारूँ कैसे?