ओ प्राणदायक मिट्टी तेरा कर्ज उतारूँ कैसे?
हार-माँस काया मिट्टी का बना,
तेरे कण की बूँद से गया कढ़ा,
अंकपाश तेरे जग पला- बढ़ा,
भूख प्यास मे तुझको ही काटा।
ओ जीवनरक्षक मिट्टी तेरा कर्ज उतारूँ कैसे?
स्वर्ण हरितिमा पत्तों को देता,
अंश जीवन का तुझमे पलता,
मूक प्राणमूल जीवन मे भरता,
मृत्यु समय अपने उर भर लेता।
ओ कष्टनिवारक मिट्टी तेरा कर्ज उतारूँ कैसे?
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