हजारों, गुजरते हुए पलों से,
एक टुकड़ा पल,
चाहा था,
मैंने,
आसमां नहीं,
एक टुकड़ा बादल!
अनभिज्ञ, था मैं कितना,
कब, ठहरा है बादल! कब, ठहरा है पल!
दरिया है, बहता है, कल-कल,
निर्बाध! निरंतर...
होता, आँखों से ओझल!
बस, ठहरा था, इक मैं ही,
और सामने, खुला नीलाभ सा, आसमां,
वियावान सा, इक नीला जंगल,
अगाध! अनंतर...
गहराता, शून्य सा आँचल!
निरंकुश, था वो कितना,
दे गईं, स्मृतियाँ! कर गईं, कुछ बोझिल!
हिस्से के, मेरे ही, वो कुछ पल,
संबाध! निरंतर...
बिखरे-बिखरे, वो बादल!
हजारों, गुजरते हुए पलों से,
एक टुकड़ा पल,
चाहा था,
मैंने,
आसमां नहीं,
एक टुकड़ा बादल!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
एक टुकड़ा पल,
चाहा था,
मैंने,
आसमां नहीं,
एक टुकड़ा बादल!
अनभिज्ञ, था मैं कितना,
कब, ठहरा है बादल! कब, ठहरा है पल!
दरिया है, बहता है, कल-कल,
निर्बाध! निरंतर...
होता, आँखों से ओझल!
बस, ठहरा था, इक मैं ही,
और सामने, खुला नीलाभ सा, आसमां,
वियावान सा, इक नीला जंगल,
अगाध! अनंतर...
गहराता, शून्य सा आँचल!
निरंकुश, था वो कितना,
दे गईं, स्मृतियाँ! कर गईं, कुछ बोझिल!
हिस्से के, मेरे ही, वो कुछ पल,
संबाध! निरंतर...
बिखरे-बिखरे, वो बादल!
हजारों, गुजरते हुए पलों से,
एक टुकड़ा पल,
चाहा था,
मैंने,
आसमां नहीं,
एक टुकड़ा बादल!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)