हौले से, आ बरसो, हृदय के आंगन में,
यूं जैसे, घन बरसे सावन में!
पहले छा जाना, मन को भा जाना,
धुंधला सा, ये गहरा आंचल, फिर फैलाना,
उतर आना, इक बदली सा आंगन में!
हौले से, आ बरसो, हृदय के आंगन में!
यूं भर लेना नैनों में थोड़ा काजल,
ज्यूं रात, मचल कर, गाती हो एक ग़ज़ल,
और साज कहीं, बजते हों उपवन में!
हौले से, आ बरसो, हृदय के आंगन में!
फिर चाहे तू कहना मन की व्यथा,
या रखना, मन की बातें, मन में ही सर्वथा,
उतर आना, नीर सरीखे, नयनन में!
हौले से, आ बरसो, हृदय के आंगन में!
सूना ये आंगन, संवर जाए थोड़ा,
सरगम की छमछम से, भर जाए ये जरा,
बज उठे शंख कई, इस सूनेपन में!
हौले से, आ बरसो, हृदय के आंगन में,
यूं जैसे, घन बरसे सावन में!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)