Showing posts with label तराना. Show all posts
Showing posts with label तराना. Show all posts

Thursday, 17 November 2016

तराना प्रणय का

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

गाएँ कैसे इसे हम, अब तुम ही हमें ये बताना,
ढ़ल रही है शाम, तुम सुरमई इसे बनाना,
अभी सहने दो मुझको, असह्य पीड़ा प्रणय का,
निकलेगी आह जब, इसे धुन अपनी बनाना।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

अभी गाऊँ भी कैसै, मैं ये तराना प्रणय का,
आह मेरी अब तक, सुरीली हुई है कहाँ,
बढ़ने दो वेदना जरा, फूटेगा ये तब बन के तराना,
तार टूटेंगे मन के, बज उठेगा तराना प्रणय का।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

कभी फूटे थे मन में, वो तराने प्रणय के,
लिखी है जो दिल पे, आकर रुकी थी ये लबों पे,
एहसास थी वो इक शबनमी, पिघलती हुई सी,
कह भी पाऊँ न मैं, दिल की सब बातें किसी से।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....

छेड़ना ना तुम कभी, फिर वो तराना प्रणय का,
अभी मैं लिख रहा हूँ, इक फसाना हृदय का,
फफक रहा है हृदय अभी, कह न पाएगा आपबीती,
नगमों में ये ढ़लेंगे जब, सुनने को तुम भी आना।

सोचा था मैंने, गाऊँगा मैं भी कभी तराना प्रणय का....