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Sunday, 30 January 2022

कठिन जरा

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

शायद, खुल जाए मन की गांठें,
कट पाए, चैन से वो रातें,
घनीभूत कर जाते, अक्सर, जो नैन,
पल-पल, भारी वो रैन,
संताप भरे, जब काली रात ढ़ले,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

पर, कठिन जरा, धीर रख पाना,
बहते पल का, रुक जाना,
पल की हलचल में, घुल-मिल जाना,
कोलाहल में, सुन पाना,
बदले परिवेश, थम जाए आवेग,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

यूं दुराग्रहों से, उबर पाया कौन?
कौन, जो सुन पाये मौन!
संताप ही भर जाते, आवेशित पल,
थम जाए, जब बादल,
बरस कर, ठहर जाए, जब पल,
तो सुन लेना, वो स्वर!

दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

Saturday, 8 September 2018

दरिया का किनारा

हूँ मैं इक दरिया का खामोश सा किनारा....

कितनी ही लहरें, यूँ छूकर गई मुझे,
हर लहर, कुछ न कुछ कहकर गई है मुझे,
दग्ध कर गई, कुछ लहरें तट को मेरे,
खामोश रहा मै, लेकिन था मैं मन को हारा,
गाती हैं लहरें, खामोश है किनारा....

बरबस हुई प्रीत, उन लहरों से मुझे,
हँसकर बहती रही, ये लहरें देखकर मुझे,
रुक जाती काश! दो पल को ये लहर,
समेट लेता इन्हें, अपनी आगोश में भरकर,
बहती है लहरें, खामोश है किनारा....

भिगोया है, लहरो ने यूँ हर पल मुझे,
हूँ बस इक किनारा, एहसास दे गई मुझे,
टूटा इक पल को, बांध धैर्य का मेरे,
रीति थी पलकें, मैं प्रीत में था सब हारा,
बस प्रीत बिना, खामोश है किनारा....

हूँ मैं इक दरिया का खामोश सा किनारा....

Wednesday, 20 January 2016

पतवार जीवन का

खे रहा पतवार जीवन का,
चल रहा तू किस पथ निरंतर,
अनिश्चित रास्तों पर तू दामन धैर्य का धर,
है पहुँचना तुझे उस कठिन लक्ष्‍य पर।

देख बाधाएँ सम्मुख विकट,
छोडना़ मत पतवार तुम,
निश्चित होकर तू अपना कर्म कर,
कर्म तेरा तुझको ले जाएगा लक्ष्य पर।

अनिश्चित सदा ही कर्म फल,
पर कर्म से यदि रहा यह पथ वंचित,
हो न पाएगा यश तेरा संचित,
धैर्य तेरा ले जाएगा तुझे उस लक्ष्य पर।

निशान कठिन रास्तों के भी,
मिलते नही लक्ष्य शिखर पर कभी,
तू बचा सका गर अपना अस्तित्‍व,
मिल जाएगा अपनत्‍व तुझे उस लक्ष्य पर।