दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!
शायद, खुल जाए मन की गांठें,
कट पाए, चैन से वो रातें,
घनीभूत कर जाते, अक्सर, जो नैन,
पल-पल, भारी वो रैन,
संताप भरे, जब काली रात ढ़ले,
तो सुन लेना, वो स्वर!
दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!
पर, कठिन जरा, धीर रख पाना,
बहते पल का, रुक जाना,
पल की हलचल में, घुल-मिल जाना,
कोलाहल में, सुन पाना,
बदले परिवेश, थम जाए आवेग,
तो सुन लेना, वो स्वर!
दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!
यूं दुराग्रहों से, उबर पाया कौन?
कौन, जो सुन पाये मौन!
संताप ही भर जाते, आवेशित पल,
थम जाए, जब बादल,
बरस कर, ठहर जाए, जब पल,
तो सुन लेना, वो स्वर!
दो पल, रुक कर, कर ले बात परस्पर,
तो, मिल जाए हल!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)
बहुत ही खूबसूरत विचार....!
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार
Deleteअतिसुंदर रचना
ReplyDeleteह्रदयतल से आभार
Deleteachhi kavita
ReplyDeleteThanks and Regards
Deleteबेहतरीन रचना
ReplyDeleteशुक्रिया आभार आदरणीया शकुन्तला जी।।।
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