लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना....
रुक गया था कुछ देर मैं, छाॅव देखकर कहीं,
छू गई मन को मेरे, कुछ हवा ऐसी चली,
सिहरन जगाती रही, अमलतास की वो कली,
बंद पलकें लिए, खोया रहा मैं यूॅ ही वही,
लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा तब वो अफसाना....
कुछ अधलिखा सा वो अफसाना,
दिल की गहराईयों से, उठ रहा बनकर धुआॅ सा,
लकीर सी खिंच गई है, जमीं से आसमां तक,
ख्वाबों संग यादों की धुंधली तस्वीर लेकर,
गाने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना.....
कह रहा मन मेरा बार-बार मुझसे यही,
उसी अमलतास के तले, आओ मिलें फिर वहीं,
पुकारती हैं तुझे अमलतास की कली कली,
रिक्त सी है जो कहानी, क्यूॅ रहे अनलिखी,
लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना....
रुक गया था कुछ देर मैं, छाॅव देखकर कहीं,
छू गई मन को मेरे, कुछ हवा ऐसी चली,
सिहरन जगाती रही, अमलतास की वो कली,
बंद पलकें लिए, खोया रहा मैं यूॅ ही वही,
लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा तब वो अफसाना....
कुछ अधलिखा सा वो अफसाना,
दिल की गहराईयों से, उठ रहा बनकर धुआॅ सा,
लकीर सी खिंच गई है, जमीं से आसमां तक,
ख्वाबों संग यादों की धुंधली तस्वीर लेकर,
गाने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना.....
कह रहा मन मेरा बार-बार मुझसे यही,
उसी अमलतास के तले, आओ मिलें फिर वहीं,
पुकारती हैं तुझे अमलतास की कली कली,
रिक्त सी है जो कहानी, क्यूॅ रहे अनलिखी,
लिखने लगा ये मन, अधलिखा सा फिर वो अफसाना....