संग तुम्हारे, सिमट आए ये रंग सारे!
है तुम्हीं से, फागुनी बयार!
कल तक न थी, ऐसी ये बयार,
गुमसुम सी, थी पवन,
न ही, रंगों में थे ये निखार,
ले आए हो, तुम्हीं,
फागुनी सी, ये बयार!
संग तुम्हारे, निखर आए ये रंग सारे!
है तुम्हीं से, फागुनी बयार!
जीवंत हो उठी, सारी कल्पना,
यूँ, प्रकृति का जागना,
जैसे, टूटी हो कोई साधना,
पी चुकी हो, भंग,
सतरंगी सी, ये बयार!
संग तुम्हारे, बिखर आए ये रंग सारे!
है तुम्हीं से, फागुनी बयार!
तुम हो साथ, रंगों की है बात,
हर ओर, ये गीत-नाद,
मोहक, सिंदूरी सी ये फाग,
कर गई है, विभोर,
अलसाई सी, ये बयार!
संग तुम्हारे, उभर आए ये रंग सारे!
है तुम्हीं से, फागुनी बयार!
- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
(सर्वाधिकार सुरक्षित)