Showing posts with label बेर. Show all posts
Showing posts with label बेर. Show all posts

Friday, 27 December 2019

बेर और बैर

बोए थे हमने भी, बेर के बीज!
वृक्ष उगे, हरियाली छाई,
बाग भी, कुछ पल को इतराई,
खुश थे हम, बेर लगेंगे,
खट्टे-मीठे, कुछ हम भी चख लेंगे,
लेकिन, उसने पाले थे काँटे,
दामन में, उसके थे जितने,
सब, उसने बाँटे!

बेर ने, खूब निभाई मुझसे ही बैर!
चलो खैर, समझ ये आई,
न बोना था, ये बेर मुझे ऐ भाई,
कल को ये, दुख ही देंगे,
आते-जाते, बरबस पाँवों में चुभेंगे,
भर ही देंगे ये, राहों में काँटे,
दर्द, पड़ेंगे खुद ही सहने,
गर, उसने बाँटे!

फिर भी, रोप रहे वो थोक में बेर!
सबकी मति, गई है मारी,
फैल गई है, शायद ये महामारी,
बन कर रोग, बैर उगेंगे,
रिश्ते लहु-लुहान, ये काँटे कर देंगे,
बनेंगे, दुःख के कारण काँटे,
बैर मन के, बढ़ेंगे जितने,
विषैले, होंगे काँटे!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)