पाकर भी, कौन किसे पाता है....
बस भरमाता है, मन,
तरपाता है क्षण!
तन तक, सीमित, रहती नहीं चाहत,
रूह कहीं, पाती नहीं राहत,
बुझती, ये प्यास नहीं,
प्यासा कण-कण, भटकता वन-वन,
सिमटता, यह रेगिस्तान नहीं,
फैलाव., भटकाता है!
पाकर भी, कौन किसे पाता है....
बिखरे पल, सिमटते, कब दामन में,
टूटे मन, भटकते इस तन में,
पाते, मन आस नहीं,
दो पल, गर बहल भी जाए, दो तन,
मिलता, इन्हें समाधान नहीं,
विलगाव, भरमाता है!
पाकर भी, कौन किसे पाता है....
बेघर एहसासों को, कोई ठौर मिले,
ठहरी साँसों को, मोड़ मिले,
पर, वो जज्बात नही,
सूखे पतझड़ सा, उजाड़ ये उपवन,
खिलाते, इक अरमान नहीं,
भटकाव, तरसाता है!
पाकर भी, कौन किसे पाता है....
बस भरमाता है, मन,
तरपाता है क्षण!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)