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Sunday, 21 July 2019

मैला मन

मैला ये तन ही क्यूं?
शायद!
ये अभिमानी मन भी हो!

वहम है या इक भ्रम है, हर इक मन,
है श्रेष्ठ वही इक, बाकि सारे हैं धूल-कण,
भूला है, शायद इस भूल-भुलावे में,
ये अभिमानी मन!

माटी के पुतले हम, है माटी का तन,
गुण-अवगुण दोनों, हैं गुंधे माटी के संग,
न जाने, फिर पलता किस भ्रम में,
ये अभिमानी मन!

कर के लाख जतन, साफ किए तन,
दोषी है खुद, पर करता है दोषा-रोपण,
झांके ना, खुद को ही इस दर्पण में,
ये अभिमानी मन!

औरों की गलती पर, हँसता है जग,
भूल करे जब खुद, होता है राग अलग,
न जाने, भटका किस संगत में,
ये अभिमानी मन!

भ्रम में तन ही क्यूं?
शायद!
ये अभिमानी मन भी हो!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा