Wednesday, 12 January 2022

सच

सच कहूं तो, आसान नहीं सच कह पाना,
और कठिन बड़ा, सच सुन पाना!

सच का दामन, ज्यूं कांटों का आंगन,
चुभ जाते हैं, ये अक्सर,
कठिन बड़ा, ये पीड़ सह पाना!

इक शख्स, अलग ही होगा दर्पण में,
सम्मुख, अक्श भिन्न सा,
शायद, कर न पाओगे सामना!

जाओगे किधर, सच से मुंह फेरकर,
धिक्कारेगा, जमीर कल,
मुश्किल, तब खुद को थामना!

ह्रदय की मन्द गति में, एक नदी है,
पल नहीं, ये एक सदी है,
प्रबल बड़ा, यह सत्य जानना!

सच कहूं तो, आसान नहीं सच कह पाना,
और कठिन बड़ा, सच सुन पाना!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

14 comments:

  1. सादर नमस्कार ,

    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बृहस्पतिवार (13-1-22) को "आह्वान.. युवा"(चर्चा अंक-4308)पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है..आप की उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी .
    --
    कामिनी सिन्हा

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  2. बहुत बढिया आदरणीय कविवर | सच को दुनिया से छिपाया जा सकता है पर अपने आप से नहीं | जो इंसान अपनी अंतरात्मा की आवाज़ सुन लेता है वह आत्म ग्लानी से निसंदेह बच जाता है |हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं एक भावपूर्ण रचना के लिए |

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    1. एक प्रेरक और बहुमूल्य टिप्पणी हेतु ह्रदयतल से आभार आदरणीया।।।।

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  3. बहुत सही कहा है, सत्य से सामना करना आग से गुजरना है

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  4. सच का दामन, ज्यूं कांटों का आंगन,
    चुभ जाते हैं, ये अक्सर,
    कठिन बड़ा, ये पीड़ सह पाना!

    इक शख्स, अलग ही होगा दर्पण में,
    सम्मुख, अक्श भिन्न सा,
    शायद, कर न पाओगे सामना!.. जीवन के गहन संदर्भ को परिभाषित करती सुंदर रचना । बहुत बहुत शुभकामनाएं आदरणीय 💐🙏

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  5. सही कहा आपने आदरणीय सच को कहने से ज्यादा सच को सुनना ही कठिन होता है। शाश्वत सत्य का उद्घाटन करती बेहतरीन रचना

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  6. सच कहना-सुनना आसान हो या न हो सच का साथ सुकूनभरा अवश्य होता है।
    सुंदर रचना।

    प्रणाम
    सादर।

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    1. बहुत बहुत धन्यवाद आदरणीया श्वेता जी .....

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  7. सच के आगे नतमस्तक हो जाता हैं झूठ
    सुंदर रचना बधाई हो आदरणीय

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