स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में.....
सम्मोहन सा, है उनकी बातों में,
मन मोह गए वो, बस बातों ही बातों में,
स्वप्न सरीखी थी, उनकी हर बातें,
हर बात अधूरा, छोड़ गए वो बातों में!
स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में.....
सब कह कर, कुछ भी ना कहना,
बातें हैं उनकी, या है ये बातों का गहना,
कहते कहते, यूँ कुछ पल रुकना,
मीठे सम्मोहन, घोल गए वो बातों में!
स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में.....
रुक गए थे वो, कुछ कहते कहते,
अच्छा ही होता, वो चुप-चुप ही रहते,
विचलित ये पल, नाहक ना करते,
असमंजस में, छोड़ गए वो बातों में!
स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में.....
स्वप्न, जागी आँखों का हो कोई,
मरुस्थल में, कोयल कूकती हो कोई,
तार वीणा के, छेड़ गया हो कोई,
स्वप्न सलोना, छोड़ गए वो बातों में!
स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में.....
काश! न रुकता ये सिलसिला,
ऐ रब, फिर चलने दे ये सिलसिला,
कह जा उनसे, फिर लब हिला,
सिलसिला , जोड़ गए जो बातों में!
स्वर उनके ही, गूंज रहे अब कानों में.....