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Thursday, 19 May 2016

यादों की एकान्त वेला

मन एकान्त सा होता नही यादों में जब होते वो संग,
आह ! यह एकान्त वेला, फिर याद लेकर उनकी आई...!

अतिशय उलझा है मन फिर ये कैसी रानाई,
घटाएँ उनके यादों की बदली सी इस मन पर छाई,
निस्तब्ध इस एकान्त वेला में ये कैसी है तन्हाई....?

यादों में पल पल वो झूलों से आते लहराकर,
मुखरे पर वही भीनी सी मंद मुस्कान बिखराकर,
कर जाते वो निःशब्द मुझको अपनाकर....!

लहराते जुल्फों की छाँवो में ही रमता है ये मन,
उनकी यादों की गाँवों में ही बसता है अब ये मन,
मन चल पड़ता उस ओर पाते ही एकान्त क्षण....!

तन्हाई डसती नहीं उनकी यादें जब हो संग,
मन एकान्त सा होता नही यादों में जब होते वो संग,
काश! क्षण उम्र के यूँ ही गुजरे यादों में उनकी संग....!

Wednesday, 20 April 2016

लहराते गेसुओं संग

गेसुओं की काली लटों मे राज गहरे छुपे हैं कितने।

खुल के लहराए है ये,
किसके गेसु उन बादलों संग,
बिखर गई है जैसे खुश्बु,
हर तरफ इन हवाओं के संग,
जाल से बिछ रहे हैं,
अब यहाँ इन गेसुओं केे,
बंध रहा हर पल ये मन,
भीनी-भीनी उन गेसुओं संग।

खुल गए हैं राज गहरे, कितने ही इन गेसुओं के।

कुछ अलग ही बात है,
लहराते घनेरे से इन गेसुओं में,
उलझी हैं ये राहें तमाम,
घुँघरुओं सी इन गेसुओं में,
लट ये काले खिल रहे हैं,
इन बादलों संग उस ओट में,
बिखरे है हिजाब गेसुओं के,
मदहोशियों सी इन धड़कनों में।

उलझे हुए सब जाल में ही, इन शबनमी गेसुओं के।