नन्हीं सी इक लौ, बुझ न पाई रात भर,
वो ले आई, धूप सुबह की!
उम्मीद थी वो, भुक-भुक रही जलती,
गहन रात की आगोश में,
अपनी ही जोश में,
पलती रही!
वो पहली किरण थी, धूप की!
उजाले ही उजाले, बिखरे गगन पर,
इक दिवस की आगोश में,
नए इक जोश में,
हँसती रही,
वो उजली किरण सी, धूप की!
ये दीप, आस का, जला उम्मीद संग,
तप्त अगन की आगोश में,
तनिक ही होश में,
खिलती रही,
वो धुंधली किरण सी, धूप की!
नन्हीं सी इक लौ, बुझ न पाई रात भर,
वो ले आई, धूप सुबह की!
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