जीवन से, गर जीवन छिन जाए,
कौन, किसे बहलाए!
आवश्यक है, इक अंतरंग प्रवाह,
लघुधारा के, नदी बनने की अनथक चाह,
बाधाओं को, लांघने की उत्कंठा,
जीवंतता, गतिशीलता, और,
थोड़ी सी, उत्श्रृंखलता!
गर, धारा से धारा ना जुड़ पाए,
नदी कहाँ बन पाए!
कुछ सपने, पल जाएँ, आँखों में,
पल भर, हृदय धड़क जाए, जज्बातों में,
मन खो जाए, उनकी ही बातों में,
कण-कण में हो कंपन, और,
थोड़ी सी, विह्वलता!
गर, दो धड़कन ना मिल पाए,
सृष्टि, कब बन पाए!
विरक्ति, उत्तर नहीं इस प्रश्न का,
जीवन से विलगाव, राह नहीं जीवन का,
पतझड़, प्रभाव नहीं सावन का,
आवश्यक इक, मिलन, और,
थोड़ी सी, मादकता!
जीवन से, गर जीवन छिन जाए,
कौन, किसे बहलाए!
(सर्वाधिकार सुरक्षित)