Friday, 30 April 2021

विरक्ति क्यूँ

जीवन से, गर जीवन छिन जाए,
कौन, किसे बहलाए!

आवश्यक है, इक अंतरंग प्रवाह,
लघुधारा के, नदी बनने की अनथक चाह,
बाधाओं को, लांघने की उत्कंठा,
जीवंतता, गतिशीलता, और,
थोड़ी सी, उत्श्रृंखलता!

गर, धारा से धारा ना जुड़ पाए,
नदी कहाँ बन पाए!

कुछ सपने, पल जाएँ, आँखों में,
पल भर,  हृदय धड़क जाए, जज्बातों में, 
मन खो जाए, उनकी ही बातों में,
कण-कण में हो कंपन, और,
थोड़ी सी, विह्वलता!

गर, दो धड़कन ना मिल पाए,
सृष्टि, कब बन पाए!

विरक्ति, उत्तर नहीं इस प्रश्न का,
जीवन से विलगाव, राह नहीं जीवन का,
पतझड़, प्रभाव नहीं सावन का,
आवश्यक इक, मिलन, और,
थोड़ी सी, मादकता!

जीवन से, गर जीवन छिन जाए,
कौन, किसे बहलाए!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
   (सर्वाधिकार सुरक्षित)

16 comments:

  1. सादर नमस्कार,
    आपकी प्रविष्टि् की चर्चा रविवार ( 02-05-2021) को
    "कोरोना से खुद बचो, और बचाओ देश।" (चर्चा अंक- 4054)
    पर होगी। चर्चा में आप सादर आमंत्रित हैं।
    धन्यवाद.


    "मीना भारद्वाज"

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  2. वर्तमान में सबों की कुछ-कुछ ऐसी ही स्थिति है । अनुत्तरित प्रश्न सा ...

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    1. जी अमृता जी! एक संवेदनशील प्रतिक्रिया हेतु आभारी हूँ। ।।।

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  3. जीवन से, गर जीवन छिन जाए,

    कौन, किसे बहलाए!

    बहुत सुंदर

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीय मनोज जी।

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  4. उत्तम रचना बधाई हो आपको आदरणीय 🌷

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  5. सराहनीय प्रस्तुति

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  6. विरक्ति, उत्तर नहीं इस प्रश्न का,
    जीवन से विलगाव, राह नहीं जीवन का,
    पतझड़, प्रभाव नहीं सावन का,
    आवश्यक इक, मिलन, और,
    थोड़ी सी, मादकता!
    सृष्टि के लिए आसक्ति का होना ज़रूरी । सुंदर रचना ।

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    1. बहुत-बहुत धन्यवाद आदरणीया संगीता जी।

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  7. कुछ सपने, पल जाएँ, आँखों में,
    पल भर, हृदय धड़क जाए, जज्बातों में,
    मन खो जाए, उनकी ही बातों में,
    कण-कण में हो कंपन, और,
    थोड़ी सी, विह्वलता!
    गर, दो धड़कन ना मिल पाए,
    सृष्टि, कब बन पाए!
    भावपूर्ण प्रस्तुति पुरुषोत्तम जी। विरक्ति से जीवन के रंग फीके पड़ने तय हैं। उमंग भरे जीवन के लिए आसक्ति और अनुराग जरूरी है। सादर 🙏🙏

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    1. जी हाँ, सृष्टि की सृजनात्मकता का आधार बना रहे।
      विनम्र आभार आदरणीया। ।।

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