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Sunday, 10 July 2022

यकीन


हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

वीथिकाएं, बिखरी यादों की भुजाएं,
बीते, उन पलों के, हर लम्हे,
उस ओर, बुलाए!
वही, ऊंचे, दरक्तों के साए,
मौसम, पतझड़ के,
जिन पर,
बे-वक्त, उभर आए!

हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

बह चले धार संग, इस उम्र के सहारे,
रह गए खाली, बेपीर किनारे,
उस ओर, पुकारे,
कौन सुने, ये मौन भरमाए,
वो खामोश दिशाएं,
रह-रह,
अनबुझ, गीत सुनाए!

हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

पूछे पता, दरक्तों से घिरी ये वीथिका,
दे इक छुवन, वो कौन गुजरा,
ये किसका, पहरा,
बंधा कर आस, छल जाए,
वो उनके ही साए,
खींच लाए,
भरमाए, संग बिठाए! 

हो यकीन कैसे, इन मौसमों पर!

- पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा 
  (सर्वाधिकार सुरक्षित)